मातृभाषा पर प्रेरणादायक कविता: मातृभाषा किसी व्यक्ति की वह मूल भाषा होती है जो वह जन्म लेने के बाद प्रथमतः बोलता है। यह उसकी भाषाई और विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान का अंग होती है। गांधी ने मातृभाषा की तुलना माँ के दूध से करते हुए कहा था कि गाय का दूध भी माँ का दूध नहीं हो सकता। कुछ अध्ययनों में साबित हुआ है कि किसी मनुष्य के नैसर्गिक विकास में उसकी मातृभाषा में प्रदत्त शिक्षण सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। इस चयन में मातृभाषा विषयक कविताओं को शामिल किया गया है।
मातृभाषा: राम प्रसाद शर्मा
संस्कारों को परिचायक यह,
लोक चेतना की नायक यह।
पालना हो या फिर हिंडोल,
बोलें नित मातृभाषा बोल।
कुशल ‘संप्रेषण दाती’ यह,
रे! हम सबको है भाती यह।
सुंदर इसकी उद्गम धारा,
कल्याण करे सर्देव हमारा।
सभी संस्कार व व्यवहार,
हैं पाते हम इससे यार।
समझो इसकी तुम परिभाषा,
छोड़ो न कभी मातृभाषा।
रे! देना इसे तुम अधिमान,
सब करें इसका सम्मान।
जन्म लेते ही बच्चा सुनता,
कई तरह के सपने बुनता।
रे! जड़ से यह जोड़े रखती,
मोल में यह बिल्कुल सस्ती।
विरासत अपनी न खोने पाए,
लुप्त कहीं न यह हो जाए।
~ राम प्रसाद शर्मा ‘प्रसाद’
मातृभाषा क्या है?
जन्म से हम जिस भाषा का प्रयोग करते है वही हमारी मातृभाषा होती है। सभी संस्कार एवं व्यवहार हम इसी के द्वारा पाते हैं। इसी भाषा से हम अपनी संस्कति के साथ जुड़कर उसकी धरोहर को आगे बढ़ाते हैं।
सभी राज्यों के लोगों का मातृ भाषा दिवस पर अभिनन्दन – हर वो व्यक्ति जो उत्सव मना रहा है। उत्सव के लिए कोई भी कारण उत्तम है। भारत वर्ष में हर प्रांत की अलग संस्कृति है; एक अलग पहचान है। उनका अपना एक विशिष्ट भोजन, संगीत और लोकगीत हैं। इस विशिष्टता को बनाये रखना, इसे प्रोत्साहित करना अति आवश्यक है।
भारत में 19,500 से अधिक भाषाएँ मातृभाषा के तौर पर बोली जाती हैं, जबकी लगभग 98% लोग संविधान की आठवीं सूची में बतायी गयी 22 भाषाओं में से ही किसी एक को अपनी मातृभाषा मानते हैं।