रहने दो मुझको निर्जन में,
काँटों को चुभने दो तन में,
मैं न चाहता सुख जीवन में,
करो न चिंता मेरी मन में,
घोर यातना ही सहने दो,
मुझे अकेला ही रहने दो।
मैं न चाहता हार बनूं मैं,
या कि प्रेम उपहार बनूं मैं,
या कि शीश शृंगार बनूं मैं,
मैं हूं फूल मुझे जीवन की,
सरिता में ही तुम बहने दो,
मुझे अकेला ही रहने दो।
नहीं चाहता हूं मैं आदर,
हेम तथा रत्नों का सागर,
नहीं चाहता हूं कोई वर,
मत रोको इस निर्मम जग को,
जो जी में आए कहने दो,
मुझे अकेला ही रहने दो।