मुझे अकेला ही रहने दो – ठाकुर गोपाल शरण सिंह

मुझे अकेला ही रहने दो।

रहने दो मुझको निर्जन में,
काँटों को चुभने दो तन में,
मैं न चाहता सुख जीवन में,
करो न चिंता मेरी मन में,
घोर यातना ही सहने दो,
मुझे अकेला ही रहने दो।

मैं न चाहता हार बनूं मैं,
या कि प्रेम उपहार बनूं मैं,
या कि शीश शृंगार बनूं मैं,
मैं हूं फूल मुझे जीवन की,
सरिता में ही तुम बहने दो,
मुझे अकेला ही रहने दो।

नहीं चाहता हूं मैं आदर,
हेम तथा रत्नों का सागर,
नहीं चाहता हूं कोई वर,
मत रोको इस निर्मम जग को,
जो जी में आए कहने दो,
मुझे अकेला ही रहने दो।

∼ ठाकुर गोपाल शरण सिंह

About Thakur Gopal Sharan Singh

ठाकुर गोपाल शरण सिंह (01 जनवरी 1891 – 02 अक्तूबर 1960) आधुनिक हिन्दी काव्य के प्रमुख उन्नायकों और पथ प्रशस्त करनेवालों में हैं। ब्रजभाषा के स्थान पर आधुनिक हिन्दी का प्रयोग कर उन्होंने काव्य में न सिर्फ़ वही माधुर्य, सरसता और प्रांजलता बनाये रखी, जो ब्रजभाषा का वैशिष्ट्य था, वरन उनकी प्रसाद अभिव्यंजना शैली में भी रमणीयता का सौंदर्य बना रहा। विषय प्रतिपादन में तल्लीनता और भाव विचार की सघनता उनकी कविता का एक और आकर्षक तत्व है। गोपालशरण सिंह का जन्म रीवा राज्य के नयीगढी इलाके के एक जमींदार के घराने में हुआ। शिक्षा रीवा एवं प्रयाग में हुई। ये प्रयाग, इंदौर और रीवा के अनेक साहित्यिक संस्थानों से संबध्द थे। इनके मुक्तक संग्रह 'माधवी, 'सुमना, 'सागरिका और 'संचिता हैं। 'कादम्बिनी तथा 'मानवी गीत-काव्य हैं। इनकी काव्य भाषा शुध्द, सहज एवं साहित्यिक है। गोपाल शरण सिंह की शिक्षा हाईस्कूल तक हुई थी, लेकिन अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू और हिन्दी चार भाषाओं के ज्ञाता थे। हैरत इस बात की है कि जब सामंतवाद अपने चरम पर था, उस समय स्वयं ठाकुर साहब ने किसानों, मजदूरों शोषितों, पीडितों और असहायों को अपनी कविता का विषय बनाया। सामंती परिवार में पैदा होकर भी ठाकुर गोपाल शरण सिंह उन सभी कुरीतियों से दूर एक मनीषी, एक आमजन की पीड़ा में छटपटाते कवि हुआ करते थे। रीवां नरेश महाराज गुलाब सिंह की कैबिनेट में जाने से उन्होंने इनकार कर दिया था। ठाकुर साहब शरीर सौष्ठव भी अद्भुत था उन्हें पहलवानी का भी शौक था। नई गढ़ी से इलाहाबद सिर्फ़ इसलिए आये ताकि बच्चों की शिक्षा-दीक्षा ठीक ढंग से हो सके। गोपाल शरण सिंह के घर पर निराला, मैथिलीशरण गुप्त महादेवी वर्मा, डॉ० रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का आना-जाना होता था। कृतियाँ– मानवी (1938), माधवी (1938), ज्योतिष्मती (1938), संचिता (1939), सुमना(1941), सागरिका(1944), ग्रामिका (1951)। प्रबंध-काव्य– जगदालोक (प्रबंध-काव्य, 1952), प्रेमांजलि [(1953), कादम्बिनी (1954), विश्वगीत (1955)।

Check Also

Vanvaas: 2024 Nana Patekar Hindi Drama Film, Trailer, Review

Vanvaas: 2024 Nana Patekar Hindi Drama Film, Trailer, Review

Movie Name: Vanvaas Directed by: Anil Sharma Starring: Nana Patekar, Utkarsh Sharma, Simrat Kaur, Rajpal Yadav, Khushbu Sundar, Ashwini Kalsekar …