मुझे बचा लो! माँ, मुझे डर लगता है।
माँ, चौखट से निकलते ही
दादा, चाचा के अंदर आने से, सिहर जाती हूँ।
राहों में घूमती निगाहों से, मैं सिमट जाती हूँ।
हँस कर बात करते हर मानव से, मैं संभल जाती हूँ।
पुरुष के झूठे अभियान से, मैं सहम जाती हूँ।
सिहर-सिहर, सहम-सहम कर जीना नहीं चाहती हूँ।
माँ, मुझे बचा लो, लगता है मुझे डर!
माँ, मैं वापस तेरे गर्भ में सिमटना चाहती हूँ।
केवल तेरी ममता की छाया चाहती हूँ।
माँ, मुझे बचा लो, मैं डर में नही जीना चाहती हूँ।
~ ईपशीता गुप्ता St. Gregorios School, Gregorios Nagar, Sector 11, Dwarka, New Delhi
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