पाताल के इस पार क्या है?
क्या क्षितिज के पार, जग
जिस पर थमा आधार क्या है?
दीप तारों की जलाकर
कौन नित करता दिवाली?
चाँद सूरज घूम किसकी
आरती करते निराली?
चाहता है सिंधु किस पर
जल चढ़ा कर मुक्त होना?
चाहता है मेघ किसके
चरण को अविराम धोना?
तिमिर–पलकें खोलकर
प्राची दिशा से झाँकती है?
माँग में सिंदूर दे
ऊषा किसे नित ताकती है?
गगन में संध्या समय
किसके सुयश का गान होता?
पक्षियों के राग में किस
मधुर का मधु–दान होता?
पवन पंखा झल रहा है
गीत कोयल गा रही है।
कौन है, किसमें निरंतर
जग–विभूति समा रही है
यदि मिला साकार तो वह
अवध का अभिराम होगा।
हृदय उसका धाम होगा
नाम उसका राम होगा।
~ श्याम नारायण पाण्डेय
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