कोरोना व ठंड में दबा बचपन: कोरोना कॉल में घर पर रह कर बच्चे चिड़-चिडे़ हो गए हैं। 6 से 12 साल के बच्चों पर ज्यादा असर देखने को मिल रहा है। बच्चों में भी डिप्रेशन के लक्षण दिख रहे हैं। खेलकूद बंद होने से बच्चों की दिनचर्या बदली है। बच्चों के बर्ताव में बदलाव दिख रहा है। स्कूल न जाने से भी बच्चों पर असर आ रहा है।
बंदिशें और दबाव: कब स्कूल जाएंगे ये पता नहीं है। बाहर खेल-कूद, मिलना-जुलना नहीं हो पा रहा है। बाजार, मॉल, रेस्टोरेंट जाना बंद है। छुट्टियों में बाहर घूमने जाना भी बंद है। बच्चे टीवी, लैपटॉप, मोबाइल की दुनिया में ही जी रहे हैं। पढ़ाई के लिए ऑनलाइन माथापच्ची हो रही है। बैठे-बैठे वजन बढ़ता जा रहा है। कोविड और मां-बाप के चिंतित चेहरे बच्चों के लिए भी तनाव का कारण हैं। अकेलापन और बुरी खबरों का तनाव भी बच्चों पर हावी दिख रहा है।
तनाव में बचपन: इन स्थितियों में बच्चों में चिड़चिड़ापन, ज्यादा गुस्सा, दुखी चेहरा आम बात होती जा रही है। बच्चों में अचानक कम या बहुत ज्यादा नींद की शिकायतें भी मिल रही हैं। बच्चों में मायूसी, कोशिश किए बिना हार मान लेनी की आदत देखने को मिल रही है। इसके अलावा थकावट, कम एनर्जी, एकाग्रता में कमी की शिकायतें भी मिल रही हैं। बच्चों में गलती पर खुद को ज्यादा कसूरवार ठहराना, सामाजिक गतिविधियों से दूरी बनाना, दोस्तों, रिश्तेदारों से कम घुलना-मिलना जैसे लक्षण भी देखने को मिल रहे हैं।
नया सूरज लायेंगे: क्षेत्रपाल शर्मा
आसमान तो बहुत दूर है,
चंदा भी है छिपा हुआ
हवा करे मेघों से छिछोरी
सूरज की हो गई रे चोरी।।
आर्द्र हो गया वातायन
इगलू जैसा मेरा घर
कंबल में सब दुबके बैठे
आग से कोई बात न कर।।
सुरभि, घिरी रहे घर
बाहर कोरोना का डर
चार दिनों से एसी ठंड
सूरज किसके घर बंद।।
गली, खेलने तब जाएंगे
एक नया, सूरज लाएंगे।।
पृष्ठभूमि:
मेरी चार साल की धेवती (बेटी की बेटी) है, यह उसी के साथ का वार्तालाप है। मैंने तो केवल उसके भावों को शब्दों के परिधान ओढा दिए। वह गली में खेलने के लिए जाने की जिद कर रही थी, मैंने इतनी सर्दी में बाहर न जाने की सलाह दी।