नया वर्ष द्वार पर: राकेश खण्डेलवाल – ‘नव वर्ष‘ प्रत्येक वर्ष 1 जनवरी को मनाया जाता है। यह सम्पूर्ण विश्व में एक बड़े उत्सव की तरह मनाया जाता है। अलग-अलग स्थानों पर नव वर्ष अलग-अलग विधियों से मनाया जाता है। स्थानीय कैलेण्डर के अनुसार विभिन्न देश एवं सम्प्रदाय के लोग अपना-अपना नव वर्ष अलग-अलग तिथियों पर मनाते हैं किन्तु अधिकांश देशों में अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार 1 जनवरी को नव वर्ष का उत्सव सामान्य रूप से मनाया जाता है।
नव वर्ष के उत्सव को मनाने के लिए लोग काफी पहले से तैयारियों में जुट जाते हैं। 31 दिसंबर को रात्रि में 12 बजते ही नव वर्ष का आगमन हो जाता है। लोग आतिशबाजी छुड़ाकर खुशी का इजहार करते हैं तथा एक-दूसरे को नव वर्ष की बधाइयां देते हैं। इस अवसर पर नव वर्ष का बधाई-पत्र देने और फोन द्वारा बधाई सन्देश देने का भी काफी चलन है।
नया वर्ष द्वार पर: राकेश खण्डेलवाल
फिर नया वर्ष आकर खड़ा द्वार पर,
फिर अपेक्षित है शुभकामना मैं करूँ,
माँग कर ईश से रंग आशीष के,
आपके पंथ की अल्पना मैं भरूँ।
फिर दिवास्वप्न के फूल गुलदान में,
भर रखूँ आपकी भोर की मेज पर,
न हो बाती नहीं हो भले तेल भी,
कक्ष में दीप पर आपके मैं धरूँ।
फिर ये आशा करूँ जो है विधि का लिखा,
एक शुभकामना से बदलने लगे,
खंडहरों-सी पड़ी जो हुई ज़िंदगी,
ताजमहली इमारत में ढलने लगे।
तार से वस्त्र के जो बिखरते हुए,
तागे हैं एक क्रम में बँधे वे सभी,
झाड़ियों में करीलों की अटका दिवस,
मोरपंखी बने और महकने लगे।
गर ये संभव है तो मैं हर इक कामना,
जो किताबों में मिलती पूर्ण कर रहा,
कल्पना के क्षितिज पर उमड़ती हुई,
रोशनी में नया रंग हूँ भर रहा।
आपको ज़िंदगी का अभीप्सित मिले,
आपने जिसका देखा कभी स्वप्न हो,
आपकी राह उन मोतियों से सजे,
भोर की दूब पर जो गगन धर रहा।