कभी नहीं देखा: हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा पर कविता – पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ किसी परिचय के मोहताज नहीं है , वह समाज के उत्थान के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं। समाज के प्रति उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता। किस प्रकार उन्होंने समाज में हो रही धर्म की हानि तथा , नैतिक मूल्यों का ह्रास तथा धर्म विशेष की उपेक्षा को उजागर करते हुए सरकार के नीति और मंसा पर प्रश्न चिन्ह लगाया है।
वास्तविकता भी यही है किस प्रकार एक वर्ग को वोट बैंक की खातिर राजकीय सम्मान और सुविधाएं प्राप्त हो रही है। वही दूसरे वर्ग को नजरअंदाज किया जा रहा है, उसकी उपेक्षा की जा रही है। यहां तक की उसके नैतिक मूल्य को भी दबाया जा रहा है।
यहां पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जैसा प्रखर वक्ता बिना संकोच के उठ खड़ा होता है और इस अन्याय के प्रति अपने आवाज को बुलंद करता है।
कभी नहीं देखा: हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा पर कविता
मैंने ISI का विरोध करते किसी मुस्लिम को नहीं देखा है
पर RSS का विरोध करते हुए लाखो हिन्दू देखे है
मैंने किसी मुस्लिम को होली दीवाली की पार्टी देते नहीं देखा है
पर हिन्दुओ को इफ्तार पार्टी देते देखा है
मैंने कश्मीर में भारत के झंडे जलते देखे है
पर कभी पाकिस्तान का झंडा जलाते हुए मुसलमान नहीं देखा है
मैंने हिन्दुओ को टोपी पहने मजारो पर जाते देखा है
पर किसी मुस्लिम को टिका लगाते मंदिर जाते नहीं देखा है
मैंने मिडिया को विदेशो के गुण गाते देखा है
पर भारत के संस्कार के प्रचार करते नहीं देखा है
मैंने साई के दरबार में लाखो चढ़ावे देखे है
पर साई के दरबार वालो को कभी गरीबो की भलाई करते नहीं देखा है
मैंने करोड़पतियों के माँ बाप को वर्द्धा आश्रम में देखा है
पर किसी करोड़पति के घर में अनाथ आश्रम नहीं देखा है
मैंने विदेशी गाडियो में विदेशी कुत्तो को घूमते देखा है
पर उनके घर के बहार कभी गाय को रोटी खिलाते नहीं देखा है
मैंने हिन्दुओ के बच्चों को इंग्लिस स्कुल में अंग्रेज की औलाद बनते देखा है
पर किसी अंग्रेज को गुरुकुल में हिन्दू बनते नहीं देखा है
मैंने फालतू पोस्ट पर हजारो कॉमेंट देखे हैं
पर राष्ट्रवादी पोस्ट पर 100 कॉमेंट भी नहीं देखे हैं