अपने अपने गाँव तक, सब का सब से मेल।
बूढ़ा पीपल घाट का, बतियाये दिन रात
जो भी गुजरे पास से, सर पर रख दे हाथ।
जादू टोना रोज का, बच्चों का व्यवहार
छोटी सी एक गेंद में, भर दें सब संसार।
छोटा कर के देखिये, जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है, बाँहों भर संसार।
मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार।
सीधा साधा डाकिया, जादू करे महान
एक ही थैले में भरे, आँसू और मुस्कान।
सातों दिन भगवान के, क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक, भूखा रहे फकीर।
अच्छी संगत बैठ कर, संगी बदले रूप
जैसे मिल कर आम से, मीठी हो गई धूप।
रस्ते को भी दोष दे, आँखों भी कर लाल
चप्पल में जो कील है, पहले उसे निकाल।
वो सूफी का कौल हो, या पंडित का ज्ञान
जितनी बीती आप पे, उतना ही सच मान।
यूँ ही होता है सदा, हर चूनर के संग
पंछी बन कर धूप में, उड़ जाता हर रंग।
~ निदा फाजली
निदा फाजली जी के दोहों को पहला भाग यहाँ पढ़ें: निदा फ़ाज़ली के दोहे 1
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