सियासत और भी गंदी हो गई है।
सुना है कश्मीर भी सांसे ले रहा है
पत्थरों की आवाजें मन्दी हो गई है।
जो चिल्ला के हिसाब मांगते थे सरकार से
वही लोग रो रहे है जब पाबंदी हो गई है।
आपस में झगड़ते थे दुश्मनों की तरह
उन नेताओं में आजकल रजामंदी हो गई है।
वतन के बदलने का एहसास है मुझको
पर एक शख्स को हराने के लिए सियासत अंधी हो गई है।
This is a nice poem, this will help me in Holiday homework.
Awesome poem sir.
May your power of poetry live long to motivate others too.?
This is very nice poem & l like it