अनगिनित लोग चलते जीवन के मग में
अनगिनित लोग नित जन्म नया पाते हैं
अनगिनित लोग मर कर जग तर जाते हैं
कुछ कर्मनिष्ठ जन कर्मलीन रहते हैं
कुछ कर्महीन बस कर्महीन रहते हैं
कुछ को जीवन में गहन मूल्य दिखता है
कुछ तज कर्मों को मुक्त सहज बहते हैं
इस महानाद में एक व्यक्ति का स्वर क्या
अनगिनित तीर जब चलें मात्र इक शर क्या
अनगिनित पथिक पथ पर प्रयाण करते जब
उस महागमन में एक व्यक्ति का पग क्या
यह अंतहीन जग सारहीन लगता है
क्या निहित प्रयोजन पता नहीं चलता है
फंस गए प्राण क्यों अनायास इस घट में
नित अथक निर्रथक छल प्रपंच छलता है
कुछ चाह नहीं बस एक चाह अब मेरी
कब टूटेगा भ्रमजाल कहां है देरी
उठ रहा पलायन गीत मात्र अंतर में
बज रही नित्य अंतिम प्रयाण की भेरी
अब उठो देह तज मुक्त उड़ो अंबर में
अब काटो मायाजाल खड्ग लो कर में
जल सीमित होता है तो गदलाता है
सब सीमाएं अब तोड़ मिलो सागर में