२९ अगस्त १९५४ को पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की बांसगाँव तहसील (अब खजनी) अन्तर्गत ग्राम कुण्डाभरथ में जन्म। कानपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम. ए. किया। सन १९६८-६९ से लेखन की शुरुआत हुई। पहली कहानी सन १९७१ में प्रकाशित। तबसे सैकड़ों रचनाएँ हिन्दुस्तान के प्रमुख समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित। अनेक प्रकार की साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थाओं के सदस्य और इमारात में हिन्दी के विकास में संलग्न। संप्रति संयुक्त अरब इमारात के अबूधाबी नगर में अध्यापन के व्यवसाय में हैं।
और क्या जुर्म है पता ही नहीं
इतने हिस्सों में बँट गया हूँ मैं
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं
जिंदगी मौत तेरी मंज़िल है
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं
जिंदगी अब बता कहाँ जाएँ
ज़हर बाज़ार में मिला ही नहीं
जिस के कारण फसाद होते हैं
उसका कोई अता पता ही नहीं
कैसे अवतार कैसे पैगंबर
ऐसा लगता है अब खुदा ही नहीं
सच घटे या बढ़े तो सच न रहे
झूठ की कोई इंतहा ही नहीं
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो
अइना झूठ बोलता ही नहीं
अपनी रचनाओं में वो जिंदा है
‘नूर’ संसार से गया ही नहीं