नभ में राज पतंगों का है।
इन्द्रधनुष के रंगों का है,
मौसम नई उमंगों का है॥
निकले सब ले डोर डोर पतंगें,
सुन्दर सी चौकोर पतंगें।
उड़ा रहे कर शोर पतंगें,
देखो चारों ओर पतंगें॥
उड़ी पतंगें बस्ती बस्ती,
कोई मंहगी, कोई सस्ती।
पर न किसी में फुट परस्ती,
उड़ा-उड़ा सब लेते मस्ती॥
चली डोर पर बैठ पतंगें,
इठलाती सी ऐंठ पतंगें।
नभ में कर घुसपैठ पतंगें,
करें परस्पर भेंट पतंगें॥
हर टोली ले खड़ी पतंगें,
कुछ छोटी कुछ बड़ी पतंगें।
आसमान में उड़ी पतंगें,
पेच लड़ाने बढ़ी पतंगें॥
कुछ के छक्के छूट रहे हैं,
कुछ के डोर टूट रहे हैं।
कुछ लंगी ले दौड़ रहे हैं,
कटी पतंगें लूट रहे हैं॥