पी जा हर अपमान – बालस्वरूप राही

पी जा हर अपमान और कुछ चारा भी तो नहीं!

तूनें स्वाभिमान से जीना चाहा यही ग़लत था
कहां पक्ष में तेरे किसी समझ वाले का मत था
केवल तेरे ही अधरों पर कड़वा स्वाद नहीं है
सबके अहंकार टूटे हैं तू अपवाद नहीं है

तेरा असफल हो जाना तो पहले से ही तय था
तूने कोई समझौता स्वीकारा भी तो नहीं!

ग़लत परिस्थिति‚ ग़लत समय में‚ गलत देश में होकर
क्या कर लेगा तू अपने हाथों में कील चुभो कर
तू क्यों टंगे क्रास पर तू क्या कोई पैगांबर है
क्या तेरे ही पास अबूझे प्रश्नों का उत्तर है?

कैसे तू रहनुमा बनेगा इन पागल भीड़ों का
तेरे पास लुभाने वाला नारा भी तो नहीं!

यह तो प्रथा पुरातन दुनियां प्रतिभा से डरती है
सत्ता केवल सरल व्यक्ति का ही चुनाव करती है
चाहे लाख बार सर पटको दर्द नहीं कम होगा
नहीं आज ही‚ कल भी जीने का यह ही क्रम होगा

माथे से हर शिकन पोंछ दे‚ आंखों से हर आंसू
पूरी बाजी देख‚ अभी तू हारा भी तो नहीं!

∼ बालस्वरूप राही

About Bal Swaroop Rahi

बालस्वरूप राही जन्म– १६ मई १९३६ को तिमारपुर, दिल्ली में। शिक्षा– स्नातकोत्तर उपाधि हिंदी साहित्य में। कार्यक्षेत्र: दिल्ली विश्विद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष के साहित्यिक सहायक, लेखन, संपादन व दूरदर्शन के लिये लगभग तीस वृत्तिचित्रों का निर्माण। कविता, लेख, व्यंग्य रचनाएँ, नियमित स्तंभ, संपादन और अनुवाद के अतिरिक्त फिल्मों में पटकथा व गीत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ: कविता संग्रह- मौन रूप तुम्हारा दर्पण, जो नितांत मेरी है, राग विराग। बाल कविता संग्रह- दादी अम्मा मुझे बताओ, जब हम होंगे बड़े, बंद कटोरी मीठा जल, हम सबसे आगे निकलेंगे, गाल बने गुब्बारे, सूरज का रथ आदि।

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