तूनें स्वाभिमान से जीना चाहा यही ग़लत था
कहां पक्ष में तेरे किसी समझ वाले का मत था
केवल तेरे ही अधरों पर कड़वा स्वाद नहीं है
सबके अहंकार टूटे हैं तू अपवाद नहीं है
तेरा असफल हो जाना तो पहले से ही तय था
तूने कोई समझौता स्वीकारा भी तो नहीं!
ग़लत परिस्थिति‚ ग़लत समय में‚ गलत देश में होकर
क्या कर लेगा तू अपने हाथों में कील चुभो कर
तू क्यों टंगे क्रास पर तू क्या कोई पैगांबर है
क्या तेरे ही पास अबूझे प्रश्नों का उत्तर है?
कैसे तू रहनुमा बनेगा इन पागल भीड़ों का
तेरे पास लुभाने वाला नारा भी तो नहीं!
यह तो प्रथा पुरातन दुनियां प्रतिभा से डरती है
सत्ता केवल सरल व्यक्ति का ही चुनाव करती है
चाहे लाख बार सर पटको दर्द नहीं कम होगा
नहीं आज ही‚ कल भी जीने का यह ही क्रम होगा
माथे से हर शिकन पोंछ दे‚ आंखों से हर आंसू
पूरी बाजी देख‚ अभी तू हारा भी तो नहीं!