पेट में पेड़ - प्रभुदयाल श्रीवास्तव Hasya Vyang Poem on Corruption

पेट में पेड़: प्रभुदयाल श्रीवास्तव की भ्रष्टाचार पर कविता

पेट में पेड़: प्रभुदयाल श्रीवास्तव – 2005 में भारत में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल नामक एक संस्था द्वारा किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि 62% से अधिक भारतवासियों को सरकारी कार्यालयों में अपना काम करवाने के लिये रिश्वत या ऊँचे दर्ज़े के प्रभाव का प्रयोग करना पड़ा। वर्ष 2008 में पेश की गयी इसी संस्था की रिपोर्ट ने बताया है कि भारत में लगभग 20 करोड़ की रिश्वत अलग-अलग लोकसेवकों को (जिसमें न्यायिक सेवा के लोग भी शामिल हैं) दी जाती है। उन्हीं का यह निष्कर्ष है कि भारत में पुलिस कर एकत्र करने वाले विभागों में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है। आज यह कटु सत्य है कि किसी भी शहर के नगर निगम में रिश्वत दिये बगैर कोई मकान बनाने की अनुमति नहीं मिलती। इसी प्रकार सामान्य व्यक्ति भी यह मानकर चलता है कि किसी भी सरकारी महकमे में पैसा दिये बगैर गाड़ी नहीं चलती।

भ्रष्टाचार अर्थात भ्रष्ट + आचार। भ्रष्ट यानी बुरा या बिगड़ा हुआ तथा आचार का मतलब है आचरण। अर्थात भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है वह आचरण जो किसी भी प्रकार से अनैतिक और अनुचित हो।

किसी को निर्णय लेने का अधिकार मिलता है तो वह एक या दूसरे पक्ष में निर्णय ले सकता है। यह उसका विवेकाधिकार है और एक सफल लोकतन्त्र का लक्षण भी है। परन्तु जब यह विवेकाधिकार वस्तुपरक न होकर दूसरे कारणों के आधार पर इस्तेमाल किया जाता है तब यह भ्रष्टाचार की श्रेणी में आ जाता है अथवा इसे करने वाला व्यक्ति भ्रष्ट कहलाता है। किसी निर्णय को जब कोई शासकीय अधिकारी धन पर अथवा अन्य किसी लालच के कारण करता है तो वह भ्रष्टाचार कहलाता है। भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में हाल ही के वर्षों में जागरुकता बहुत बढ़ी है। जिसके कारण भ्रष्टाचार विरोधी अधिनियम -1988, सिटीजन चार्टर, सूचना का अधिकार अधिनियम – 2005, कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट आदि बनाने के लिये भारत सरकार बाध्य हुई है।

पेट में पेड़: प्रभुदयाल श्रीवास्तव की हास्य कविता

पर्यावरण दिवस आया तो,
मंत्रीजी भी आये।
सड़क किनारे धूम धाम से,
पौधे साठ लगाए।

तभी एक बकरे ने आकर,
पौधे सारे खाये।
मीठे मीठे पौधे खाकर,
बकरा जी घर आये।

शाम ढ़ले ही मंत्रीजी ने,
बकरा पकड़ मंगाया।
पका रसोई घर में फिर क्या!
बड़े स्वाद से खाया।

पर्यावरण दिवस पर अक्सर,
ही लगते जयकारे।
पेड़ पेट में पहुँच रहे हैं,
मंत्रीजी के सारे।

~ प्रभुदयाल श्रीवास्तव – छिंदवाडा, मध्य प्रदेश

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