एक गंध थी माँ की रचना की
एक गंध बीमार बिस्तर पर
माँ की झुर्रियों, दवा की शीशियों की
टिंचर फिनायल में रपटी
सहमी अस्पताल हवा की
या डूबे-डूबे
या कभी तेज़ कदमों से बढ़ते
अतीत हो जाने की
एक गंध है माँ के गर्भ में दबी शंकाओं की
कली के फूटने और नियति के वज्रपात की
झुलसी घुंघराली, धुआँ-सी गंध
कैसी गंध है यह मेरे आसपास
मज़ार की मिट्टी की सोंधी महक
तने हुए पौधे की इठलाती गमक
या खिलते हुए फूल की चहकती लहक
सब मुझमें माँ और
बिटिया बन समा गईं।