पिता की भावनाएं: निशीथ द्विवेदी
फादर्स डे पिताओं के सम्मान में एक व्यापक रूप से मनाया जाने वाला पर्व हैं जिसमे पितृत्व (फादरहुड), पितृत्व-बंधन तथा समाज में पिताओं के प्रभाव को समारोह पूर्वक मनाया जाता है। भारत और अनेक देशों में इसे जून के तीसरे रविवार, तथा बाकी देशों में अन्य दिन मनाया जाता है। यह माता के सम्मान हेतु मनाये जाने वाले मदर्स डे (मातृ-दिवस) का पूरक है।
पापा याद बहुत आते हो? कुछ ऐसा भी मुझे कहो,
मैंने भी मन मे जज़्बातोँ के तूफान समेटे हैँ,
ज़ाहिर नही किया, न सोचो पापा के दिल में प्यार न हो।
थी मेरी ये ज़िम्मेदारी घर मे कोई मायूस न हो,
मैं सारी तकलीफेँ झेलूँ और तुम सब महफूज़ रहो,
सारी खुशियाँ तुम्हें दे सकूँ, इस कोशिश मे लगा रहा,
मेरे बचपन में थी जो कमियाँ, वो तुमको महसूस न हो।
है समाज का नियम भी ऐसा पिता सदा गम्भीर रहे,
मन मे भाव छुपे हो लाखोँ, आँखो से न नीर बहे!
करे बात भी रुखी-सूखी, बोले बस बोल हिदायत के,
दिल मे प्यार है माँ जैसा ही, किंतु अलग तस्वीर रहे।
भूली नही मुझे हैं अब तक, तुतलाती मीठी बोली,
पल-पल बढते हर पल मे, जो यादोँ की मिश्री घोली,
कन्धोँ पे वो बैठ के जलता रावण देख के खुश होना,
होली और दीवाली पर तुम बच्चोँ की अल्हड टोली।
माँ से हाथ-खर्च मांगना, मुझको देख सहम जाना,
और जो डाँटू ज़रा कभी, तो भाव नयन मे थम जाना,
बढते कदम लडकपन को कुछ मेरे मन की आशंका,
पर विश्वास तुम्हारा देख मन का दूर वहम जाना।
कॉलेज के अंतिम उत्सव मेँ मेरा शामिल न हो पाना,
ट्रेन हुई आँखो से ओझल, पर हाथ देर तक फहराना,
दूर गये तुम अब, तो इन यादोँ से दिल बहलाता हूँ,
तारीखेँ ही देखता हूँ बस, कब होगा अब घर आना।
अब के जब तुम घर आओगे, प्यार मेरा दिखलाऊंगा,
माँ की तरह ही ममतामयी हूँ, तुमको ये बतलाऊंगा,
आकर फिर तुम चले गये, बस बात वही दो-चार हुई,
पिता का पद कुछ ऐसा ही है फिर खुद को समझाऊंगा।