अब प्यारी लगती बेटी है: प्रभुदयाल श्रीवास्तव
भैया कभी सताना मत।
तिरस्कार करके उनका हर,
पल उपहास उड़ाना मत।
एक जमाना था लड़की को,
बोझ बताया जाता था।
दुनियाँ मॆं उसके आते ही,
शॊक जताया जाता था।
हुई यदि लड़की घर में तो,
मातम जैसा छा जाता।
हर पास पड़ौसी घर आकर,
अपना दर्द जता जाता।
ऐसा लगता लड़की ना हो,
कोई आफत गले पड़ी।
ढेरों ताने तो माता को,
सुनना पड़ते घड़ी घड़ी।
किंतु आज परिवर्तन की कुछ,
लहर दिखाई देती है।
परियों जैसी नटखट सी अब,
प्यारी लगती बेटी है।
माता और पिता को अब तो,
लड़की भार नहीं लगती।
जो कठिन काम करते लड़के,
वह लड़की भी कर सकती।
सैनिक बनकर सीमा पर भी,
बम बारूद चलाती है।
बनकर दुर्गा वह रिपुओं का,
शीश काट ले आती है।
उड़ अंबर मॆं भी जाती है,
सागर तल भी छू आती।
पर्वत के सीने छलनी कर,
सिर उसके ध्वज फहराती।
कंधे से कंधा मिलाना अब,
बेटी को चलना आता।
सड़कों पर चलती बाला से,
अब कौन नज़र टकराता।
अब भी कुछ पुरा पंथियों को,
पर लड़की दिखती भारी।
दुर्गा, देवी, काली को भी,
अब तक समझे बीमारी।
बहकावे मॆं आ लड़की को,
पेटों मॆं मरवाना मत।
तिरस्कार करके उनका हर,
पल उपहास उड़ाना मत।
~ प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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