बूंदों की चौपाल: प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल-कविता [15]
हरे-हरे पत्तों पर बैठे,
हैं मोती के लाल।
बूंदों की चौपाल सजी है,
बूंदों की चौपाल।
बादल की छन्नी में छनकर,
आई बूंदें मचल मटक कर।
पेड़ों से कर रहीं जुगाली,
बतयाती बैठी डालों पर।
नवल धवल फूलों पर बैठे,
जैसे हीरालाल।
बूंदों की…
सर-सर हिले हवा में पत्ते
जाते दिल्ली से कलकत्ते।
बिखर-बिखर कर गिर-गिर जाते,
बूंदों के नन्हें से बच्चे।
रिमझिम बूंदों से गीली हुई,
आंगन रखी पुआल।
बूंदों की…
पीपल पात थरर थर कांपा।
कठिन लग रहा आज बुढ़ापा।
बूंदें, हवा मारती टिहुनी,
फिर भी नहीं खो रहा आपा।
उसे पता है आगे उसका,
होना है क्या हाल।
बूंदों की…