कुछ न कुछ करते रहना: प्रभुदयाल श्रीवास्तव की बाल-कविता [2]
कुछ न कुछ करते रहना है।
गरमी की छुट्टी में रम्मू,
प्यारे-प्यारे चित्र बनाता।
उन्हें बेचकर मजे-मजे से,
रुपए रोज कमाकर लाता।
इन रुपयों से निर्धन बच्चों,
की उसको सेवा करना है।
लल्ली ने गरमी की छुट्टी,
एक गांव में काटी जाकर,
कैसे पानी हमें बचाना,
लौटी है सबको समझाकर।
निश्चित इसका सुफल मिलेगा,
बूंद-बूंद पानी बचना है।
उमर हुई अस्सी की फिर भी,
दादाजी सबको समझाते।
कचरा मत फेको सड़कों पर,
कचरा बीमारी फैलाते।
रोज बीनते कचरा पन्नी,
कहते हमें स्वस्थ रहना है।
कुछ न कुछ करते रहने से,
होती रहती सदा भलाई।
तन तो स्वस्थ रहा करता है,
मन की होती खूब सफाई।
चिंता-फ़िक्र दूर होती है,
बहता खुशियों का झरना है।