यों कथा–कहानी–उपन्यास में कुछ भी हो
इस अधकचरे मन के पहले आकर्षण को
कोई भी याद नहीं रखता
चाहे मैं हूं‚ चाहे तुम हो!
कड़वा नैराश्य‚ विकलता‚ घुटती बेचैनी
धीरे–धीरे दब जाती है‚
परिवार‚ गृहस्थी‚ रोजी–धंधा‚ राजनीति
अखबार सुबह‚ संध्या को पत्नी का आँचल
मन पर छाया कर लेते हैं
जीवन की यह विराट चक्की
हर–एक नोक को घिस कर चिकना कर देती‚
कच्चे मन पर पड़नेवाली पतली रेखा
तेजी से बढ़ती हुई उम्र के
पाँवों से मिट जाती है।
यों कथा–कहानी–उपन्यास में कुछ भी हो
इस अधकचरे मन की पहली कमज़ोरी को
कोई भी याद नहीं रखता
चाहे मैं हूं‚ चाहे तुम हो!
दूसरा दृष्टिकोण
यों दुनियाँ–दिखलावे की बात भले कुछ भी हो
इस कच्चे मन के पहले आत्म–समर्पण को
कोई भी भूल नहीं पाता
चाहे मैं हूं‚ चाहे तुम हो
हर–एक काम में बेतरतीबी‚ झुंझलाहट
जल्दबाजी‚ लापरवाही
या दृष्टिकोण का रूखापन
अपने सारे पिछले जीवन
पर तीखे व्यंग वचन कहना
या छोटेमोटे बेमानी कामों में भी
आवश्यकता से कहीं अधिक उलझे रहना
या राजनीति‚ इतिहास‚ धर्म‚ दर्शन के
बड़े लबादों में मुह ढक लेना
इन सबसे केवल इतना ज़ाहिर होता है
यों दुनियाँ–दिखलावे की बात भले कुछ भी हो
इस कच्चे मन के पहले आत्म–समर्पण को
कोई भी भूल नहीं पाता
चाहे मैं हूं‚ चाहे तुम हो।