बाल-कविताएँ [8] – पतंगबाजी: जया मिश्रा
थोड़ा इधर दो ध्यान जी।
चाइना वाली डोर न लेना,
कट जाते हैं इससे कान जी।
छज्जों पर ना तुम चढना,
खुद का पूरा ध्यान तुम करना।
पतंग कटने पर न तुम लड़ना,
पतंग से सीखो ऊंचे उड़ना।
भरो जिज्ञासा की तुम उड़ान जी,
करनी है जो पतंगबाजी,
थोड़ा इधर दो ध्यान जी।
~ जया मिश्रा, जालन्धर
बाल-कविता [9] – मेहनत वाले: सुगन धीमान
मेहनत वाले आगे बढकर
सूरज बन दिखलाते हैं।
बिन मेहनत कुछ नहीं मिलता
बैठे ही रह जाते हैं।
सोच हमारी अच्छी होगी तो,
सच अपना भी साथी होगा।
अच्छे काम करेंगे जग में,
रोशन नाम बड़ा होगा।
पढना-लिखना बहुत जरूरी,
बुद्धि का होता विस्तार।
अनपढ़ घना अंधेरा,
डूबना पड़ता है मझधार।
कष्ट प्रबल और हो जाते,
जब कष्टों को पीठ दिखाएं।
कष्ट चूर करने वाले ही,
कष्टों पर से लांघ कर जाएं।
देश का सच्चा सैनिक बनकर,
देश की खातिर जीना होगा,
मजबूती से तिरंगा थामकर,
परिचय साहस का देना होगा।
मिल जाएंगी जीवन की खुशियां,
खिलेंगे बंजर में भी फूल।
भाग्य सहारे बैठे रहने की,
वीर नहीं करते हैं भूल।
मेहनत वाले आगे बढ़।
गौरवमयी इतिहास बनेगा।