तो कोठों की कहानी कुछ और होती।
बनते जो अधर ह्रदय की अभिलाषा,
तो घर की रवानी कुछ और होती।
होता जो प्यार कोई भौतिक चमचमाहट,
तो ऊँची मीनारे न कभी धूल में मिलतीं।
होता जो प्यार ऐश्वर्य कि तमतमाहट,
तो महलों कि दीवारें खण्डहर न बनतीं।
देह से अलग प्यार तो नैसर्गिक आराधना है,
प्यार ईश्वरीय कर्म है और विनम्र साधना है।
प्यार संवेदनाओं का उच्चतम आकर्षण है,
प्यार मधुर उमंगों का स्वाभाविक दर्पण है।
प्यार नफ़रत को जड़ – मूल से नष्ट करवाता है,
प्यार आडंबरों से मुक्ति का मार्ग बन जाता है।
प्यार तो बसता है भावनाओं के समुन्दर में,
निःस्वार्थ समर्पण और परस्पर स्पन्दन में।
बसता है प्यार मीरा की स्वर रचना में,
बसता है प्यार कान्हा की सुर बांसुरी में।