राख – कैफ़ी आज़मी

जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आँखें मुझमें
राख के ढेर में शोला है न चिंगारी है

अब न वो प्यार न उस प्यार की यादें बाकी
आग यूँ दिल में लगी कुछ न रहा कुछ न बचा
जिसकी तस्वीर निगाहों में लिये बैठी हो
मैं वो दिलदार नहीं उसकी हूँ खामोश चिता

जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आँखें मुझमें
राख के ढेर में शोला है न चिंगारी है

जिंदगी हँस के गुज़रती तो बहुत अच्छा था
खैर हँस कर न सही रो के गुज़र जाएगी
राख बरबाद मुहब्बत की बचा रखी है
बार बार इसको जो छेड़ा तो बिखर जाएगी

जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आँखें मुझमें
राख के ढेर में शोला है न चिंगारी है

आरज़ू जुर्म वफ़ा जुर्म तमन्ना है गुनाह
ये वो दुनियाँ है जहाँ प्यार नहीं हो सकता
कैसे बाज़ार का दस्तूर तुम्हें समझाऊँ
बिक गया जो वो खरीदार नहीं हो सकता

जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आँखें मुझमें
राख के ढेर में शोला है न चिंगारी है

∼ कैफ़ी आज़मी

Check Also

World Thalassemia Day Information For Students

World Thalassemia Day: Date, History, Celebration & Theme

World Thalassemia Day is celebrated every year on 8th of May to increase the awareness …