रहने को घर नहीं है - हुल्लड़ मुरादाबादी

रहने को घर नहीं है – हुल्लड़ मुरादाबादी

कमरा तो एक ही है
कैसे चले गुजारा
बीबी गई थी मैके
लौटी नहीं दुबारा
कहते हैं लोग मुझको
शादी-शुदा कुँआरा
रहने को घर नहीं है
सारा जहाँ हमारा।

महँगाई बढ़ रही है
मेरे सर पे चढ़ रही है
चीजों के भाव सुनकर
तबीयत बिगड़ रही है
कैसे खरीदूँ मेवे
मैं खुद हुआ छुआरा
रहने को घर नहीं है
सारा जहाँ हमारा।

शुभचिंतको मुझे तुम
नकली सुरा पिला दो
महँगाई मुफलिसी से
मुक्ति तुरत दिला दो
भूकंप जी पधारो
अपनी कला दिखाओ
भाड़े हैं जिनके ज्यादा
वह घर सभी गिराओ
इक झटका मारने में
क्या जाएगा तुम्हारा
रहने को घर नहीं है
सारा जहाँ हमारा।

जिसने भी सत्य बोला
उसको मिली ना रोटी
कपड़े उतर गए सब
उसे लग गई लँगोटी
वह ठंड से मरा है
दीवार के सहारे
ऊपर लिखे हुए थे
दो वाक्य प्यारे- प्यारे
सारे जहाँ से अच्छा
हिंन्दोसताँ हमारा
हम बुलबुले हैं इसकी
यह गुलसिताँ हमारा
रहने को घर नहीं है
सारा जहाँ हमारा।

∼ हुल्लड़ मुरादाबादी

About Hullad Moradabadi

हुल्लड़ मुरादाबादी (29 मई 1942 – 12 जुलाई 2014) इनका वास्तविक नाम सुशील कुमार चड्ढा, एक हिंदी हास्य कवि थे। इतनी ऊंची मत छोड़ो, क्या करेगी चांदनी, यह अंदर की बात है, तथाकथित भगवानों के नाम जैसी हास्य कविताओं से भरपूर पुस्तकें लिखने वाले हुल्लड़ मुरादाबादी को कलाश्री, अट्टहास सम्मान, हास्य रत्न सम्मान, काका हाथरसी पुरस्कार जैसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा मार्च 1994 में राष्ट्रपति भवन में अभिनंदन हुआ था। हुल्लड़ मुरादाबादी का जन्म 29 मई 1942 को गुजरावाला, पाकिस्तान में हुआ था। बंटवारे के दौरान परिवार के साथ मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश आ गए थे। शुरुआत में उन्होंने वीर रस की कविताएं लिखी लेकिन कुछ समय बाद ही हास्य रचनाओं की ओर उनका रुझान हो गया और हुल्लड़ की हास्य रचनाओं से कवि मंच गुलजार होने लगे। सन 1962 में उन्होंने ‘सब्र’ उप नाम से हिंदी काव्य मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। बाद में वह हुल्लड़ मुरादाबादी के नाम से देश दुनिया में पहचाने गए। उनका एक दोहा- पूर्ण सफलता के लिए, दो चीजें रख याद, मंत्री की चमचागिरी, पुलिस का आशीर्वाद।’ राजनीति पर उनकी कविता- ‘जिंदगी में मिल गया कुरसियों का प्यार है, अब तो पांच साल तक बहार ही बहार है, कब्र में है पांव पर, फिर भी पहलवान हूं, अभी तो मैं जवान हूं...।’ उन्होंने कविताओं और शेरो शायरी को पैरोडियों में ऐसा पिरोया कि बड़ों से लेकर बच्चे तक उनकी कविताओं में डूबकर मस्ती में झूमते रहते। एचएमवी एवं टीसीरीज से कैसेट्स से ‘हुल्लड़ इन हांगकांग’ सहित रचनाओं का एलबम भी हैं। उन्होंने बैंकाक, नेपाल, हांगकांग, तथा अमेरिका के 18 नगरों में यात्राये भी की।

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