ऋतु होली की आई: नीलम जैन

ऋतु होली की आई: नीलम जैन

ऋतु होली की आई: इस दिन लोग प्रात:काल उठकर रंगों को लेकर अपने नाते-रिश्तेदारों व मित्रों के घर जाते हैं और उनके साथ जमकर होली खेलते हैं। बच्चों के लिए तो यह त्योहार विशेष महत्व रखता है। वह एक दिन पहले से ही बाजार से अपने लिए तरह-तरह की पिचकारियां व गुब्बारे लाते हैं। बच्चे गुब्बारों व पिचकारी से अपने मित्रों के साथ होली का आनंद उठाते हैं।

सभी लोग बैर-भाव भूलकर एक-दूसरे से परस्पर गले मिलते हैं। घरों में औरतें एक दिन पहले से ही मिठाई, गुझिया आदि बनाती हैं व अपने पास-पड़ोस में आपस में बांटती हैं। कई लोग होली की टोली बनाकर निकलते हैं उन्हें हुरियारे कहते हैं।

ब्रज की होली, मथुरा की होली, वृंदावन की होली, बरसाने की होली, काशी की होली पूरे भारत में मशहूर है।

आजकल अच्छी क्वॉलिटी के रंगों का प्रयोग नहीं होता और त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले रंग खेले जाते हैं। यह सरासर गलत है। इस मनभावन त्योहार पर रासायनिक लेप व नशे आदि से दूर रहना चाहिए। बच्चों को भी सावधानी रखनी चाहिए। बच्चों को बड़ों की निगरानी में ही होली खेलना चाहिए। दूर से गुब्बारे फेंकने से आंखों में घाव भी हो सकता है। रंगों को भी आंखों और अन्य अंदरूनी अंगों में जाने से रोकना चाहिए। यह मस्ती भरा पर्व मिलजुल कर मनाना चाहिए।

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ऋतु होली की आई: नीलम जैन

होली है और धूम मची है,
नई उमंग से धरा सजी है।

प्रात: गुलाबी किरणों का है,
रंगो से है छुपा छुपाई,
आओ सखी री भीगी मेंहदी,
फिर से ऋतु होली की आई।

होली है और धूम मची है,
नई उमंग से धरा सजी है।

लहरों-सा मन इत उत डोले,
नटखट हो बरसा रंग रास,
आलिंगन में लिपटी चाहें,
बौछारों से पुलकित गात।

होली है और धूम मची है,
नई उमंग से धरा सजी है।

लहराया जो पवन हिंडोला,
चुनरी का आँचल विस्तार,
ध नि ध प बूँदे टपकीं,
मुस्काता बैठा अभिसार।

होली है और धूम मची है,
नई उमंग से धरा सजी है।

∼ नीलम जैन

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