Bekal Utsahi Contemplation Hindi Poem रोते रोते बहल गई कैसे

Bekal Utsahi Contemplation Hindi Poem रोते रोते बहल गई कैसे

रोते रोते बहल गई कैसे
रुत अचानक बदल गई कैसे

मैंने घर फूँका था पड़ौसी का
झोपड़ी मेरी जल गई कैसे

जिस पे नीयत लगी हो मौसम की
सूखी टहनी वो फल गई कैसे

बात जो मुद्दतों से दिल में थी
आज मुँह से निकल गई कैसे

जिन्दगी पर बड़ा भरोसा था
जिन्दगी चाल चल गई कैसे

दोस्ती है चटान वादों की
मोम बन कर पिघल गई कैसे

चढ़ते सूरज को पूजता ही रहा
फिर जवानी यह ढल गई कैसे

आप रसिया हैं गीत के बेकल
आप के घर गज़ल गई कैसे!

बेकल उत्साही

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