सर्प–दंश सहना है,
मुझको तो जीवन भर
चंदन ही रहना है।
वक़्त की हथेली पर
प्रश्न–सा जड़ा हूं मैं,
टूटते नदी–तट पर
पेड़ सा खड़ा हूं मैं,
रोज़ जलन पीनी है,
अग्नि–दंश सहना है,
मुझको तो लपटों में
कंचन ही रहना है।
शब्द में जनमा हूं
अर्थ में धंसा हूं मैं,
जाल में सवालों के
आज तक फंसा हूं मैं,
रोज़ धूप पीनी है,
सूर्य–दंश सहना है,
कितना भी चिटकूं पर
दर्पण ही रहना है।