Majrooh Sultanpuri Inspirational Teacher's Day Song रुक जाना नहीं तू कहीं हार के

रुक जाना नहीं तू कहीं हार के: मजरूह सुल्तानपुरी

महान शायर और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी का अपनी जिंदगी और शायरी के बारे में नजरिया कुछ ऐसा ही था जैसा कि उनका यह गीत कि ‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल‘।

मुशायरों और महफिलों में मिली शोहरत तथा कामयाबी ने एक यूनानी हकीम असरारूल हसन खान को फिल्म जगत का एक अजीम शायर और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी बना दिया। उन्होंने चार दशक से भी ज्यादा लंबे सिने करियर में करीब 300 फिल्मों के लिए लगभग 4000 गीतों की रचना की।

मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर शहर में 1 अक्टूबर 1919 को हुआ था। उनके पिता एक पुलिस उप-निरीक्षक थे और वे मजरूह सुल्तानपुरी को ऊंची से ऊंची तालीम देना चाहते थे। मजरूह सुल्तानपुरी ने लखनऊ के तकमील उल तीब कॉलेज से यूनानी पद्धति की मेडिकल की परीक्षा उर्तीण की और बाद में वे एक हकीम के रूप में काम करने लगे।

बचपन के दिनों से ही मजरूह सुल्तान पुरी को शेरो-शायरी करने का काफी शौक था और वे अक्सर सुल्तानपुर में हो रहे मुशायरों में हिस्सा लिया करते थे। इस दौरान उन्हें काफी नाम और शोहरत मिली। उन्होंने अपनी मेडिकल की प्रैक्टिस बीच में ही छोड़ दी और अपना ध्यान शेरो-शायरी की ओर लगाना शुरू कर दिया।

रुक जाना नहीं तू कहीं हार के: मजरूह सुल्तानपुरी

रुक जाना नहीं तू कहीं हार के
कांटों पे चल के मिलेंगे साये बहार के
ओ राही, ओ राही

नैन आंसू जो लिये हैं, ये राहों के दिये हैं
लोगों को उनका सब कुछ देके
तू तो चला था सपने ही लेके
कोई नहीं तो तेरे अपने हैं सपने ये प्यार के

सूरज देख रुक गया है, तेरे आगे झुक गया है
जब कभी ऐसे कोई मस्ताना
निकले है अपनी धुन में दीवाना
शाम सुहानी बन जाते हैं दिन इंतजार के

साथी ना कारवाँ है, ये तेरा इम्तिहान है
यूँ ही चला चल दिल के सहारे
करती है मंजिल तुझ को इशारे
देख कहीं कोई रोक नहीं ले तुझको पुकार के

मजरूह सुल्तानपुरी

गीतकार: मजरूह सुल्तानपुरी
गायक: किशोर कुमार
संगीतकार: लक्ष्मीकांत प्यारेलाल
कलाकार: विनोद खन्ना, तनूजा
चित्रपट: इम्तिहान (1974)

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