साँप – धनंजय सिंह

अब तो सड़कों पर उठाकर फन
चला करते हैं साँप
सारी गलियां साफ हैं
कितना भला करते हैं साँप।

मार कर फुफकार
कहते हैं ‘समर्थन दो हमें’
तय दिलों की दूरियों का
फासला करते हैं साँप।

मैं भला चुप क्यों न रहता
मुझको तो मालूम था
नेवलों के भाग्य का अब
फैसला करते हैं साँप।

डर के अपने बाजुओं को
लोग कटवाने लगे
सुन लिया है, आस्तीनों में
पला करते हैं साँप।

— धनंजय सिंह

Check Also

राजा और नेत्रहीन संत

राजा और नेत्रहीन संत: आदमी की पहचान – प्राचीन शिक्षाप्रद हिंदी कहानी

राजाओं-महाराजाओं को शिकार पर जाने और शिकार करने की आदत तो होती ही है। कई …