बीत गया है फिर इतवार।
गमलों में पड़ा नहीं पानी
पढ़ी नहीं गई संत-वाणी
दिन गुज़रा बिलकुल बेकार
सारे दिन पढ़ते अख़बार।
पुँछी नहीं पत्रों की गर्द
खिड़की-दरवाज़े बेपर्द
कोशिश करते कितनी बार
सारे दिन पढ़ते अख़बार।
मुन्ने का तुतलाता गीत-
अनसुना गया बिल्कुल बीत
कई बार करके स्वीकार
सारे दिन पढ़ते अख़बार
बीत गया है फिर इतवार।