साबुत आईने – धर्मवीर भारती

साबुत आईने – धर्मवीर भारती

इस डगर पर मोड़ सारे तोड़,
ले चूका कितने अपरिचित मोड़।

पर मुझे लगता रहा हर बार,
कर रहा हूँ आइनों को पार।

दर्पणों में चल रहा हूँ मै,
चौखटों को छल रहा हूँ मै।

सामने लेकिन मिली हर बार,
फिर वही दर्पण मढ़ी दीवार।

फिर वही झूठे झरोके द्वार,
वही मंगल चिन्ह वंदनवार।

किन्तु अंकित भीत पर, बस रंग से,
अनगिनित प्रतिबिंब हँसते व्यंग से।

फिर वही हारे कदम की होड़,
फिर वही झूठे अपरिचित मोड़।

लौटकर फिर लौटकर आना वही,
किन्तु इनसे छूट भी पाना नही।

टूट सकता, टूट सकता काश,
यह अजब–सा दर्पणों का पाश।

दर्द की यह गाँठ कोई खोलता,
दर्पणों के पार कुछ तो बोलता।

यह निरर्थकता सही जाती नही,
लौटकर, फिर लौटकर आना वहीँ।

राह मै कोई न क्या रच पाउँगा,
अंत में क्या मै यही बच जाऊँगा।

बिंब आइनों में कुछ भटका हुआ,
चौखटों के कास पर लटका हुआ।

~ धर्मवीर भारती

About Dharamvir Bharati

धर्मवीर भारती (२५ दिसंबर, १९२६- ४ सितंबर, १९९७) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। वे एक समय की प्रख्यात साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग के प्रधान संपादक भी थे। डॉ धर्मवीर भारती को १९७२ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनका उपन्यास गुनाहों का देवता सदाबहार रचना मानी जाती है। सूरज का सातवां घोड़ा को कहानी कहने का अनुपम प्रयोग माना जाता है, जिस श्याम बेनेगल ने इसी नाम की फिल्म बनायी, अंधा युग उनका प्रसिद्ध नाटक है।। इब्राहीम अलकाजी, राम गोपाल बजाज, अरविन्द गौड़, रतन थियम, एम के रैना, मोहन महर्षि और कई अन्य भारतीय रंगमंच निर्देशकों ने इसका मंचन किया है।

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