साकेत: राम का उत्तर – मैथिली शरण गुप्त

“हा मातः‚ मुझको करो न यों अपराधी‚
मैं सुन न सकूंगा बात और अब आधी।
कहती हो तुम क्या अन्य तुल्य यह वाणी‚
क्या राम तुम्हारा पुत्र नहीं वह मानी?

अब तो आज्ञा की अम्ब तुम्हारी बारी‚
प्रस्तुत हूं मैं भी धर्म धनुर्धृतिधारी।
जननी ने मुझको जना‚ तुम्हीं ने पाला‚
अपने सांचे में आप यत्न कर डाला।

सबके ऊपर आदेश तुम्हारा मैया‚
मैं अनुचर पूत‚ सपूत‚ प्यार का भैया।
बनवास लिया है मान तुम्हारा शासन‚
लूंगा न प्रजा का भार‚ राज सिंहासन?

पर यह पहला आदेश प्रथम हो पूरा‚
वह तात–सत्य भी रहे न अम्ब‚ अधूरा–
जिस पर हैं अपने प्राण उन्होंने त्यागे‚
मैं भी अपना व्रत–नियम निबाहूं आगे।

निष्फल न गया मां यहां‚ भरत का आना‚
सिर माथे मैंने वचन तुम्हारा माना।
संतुष्ट मुझे तुम देख रही हो बन में‚
सुख धन धरती में नहीं‚ किंतु निज मन में।”

“राघव तेरे ही योग्य कथन है तेरा‚
दृढ़ बाल–हठी तू वही राम है मेरा।
देखें हम तेरा अवधि मार्ग सब सहकर‚”
कौशल्या चुप हो गई आप यहा कहकर।

ले एक सांस रह गई सुमित्र्रा भोली‚
कैकेई ही फिर रामचंद्र से बोली–
“पर मुझको तो परितोष नहीं है इससे‚
हा! तब तक मैं क्या कहूं सुनूंगी किससे?
हे वत्स‚ तुम्हें बनवास दिया मैंने ही‚
अब उसका प्रत्याहार किया मैंने ही।”

“पर रघुकुल में जो वचन दिया जाता है‚
लौटा कर फिर वह कहां लिया जाता है?
क्यों व्यर्थ तुम्हारे प्राण खिन्न होते हैं‚
वे प्रेम और कर्तव्य भिन्न होते हैं।

जाने दो‚ निर्णय करें भरत ही सारा–
मेरा अथवा है‚ कथन यथार्थ तुम्हारा।
मेरी–इनकी चिर पंच रहीं तुम माता‚
हम दोनों के मध्यस्थ आज ये भ्राता”

∼ मैथिली शरण गुप्त (राष्ट्र कवि)

About Maithili Sharan Gupt

राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त (३ अगस्त १८८६ – १२ दिसम्बर १९६४) हिन्दी के कवि थे। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया और इस तरह ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण नये कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिन्दी कविता के इतिहास में गुप्त जी का यह सबसे बड़ा योगदान है। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं, जो पंचवटी से लेकर जयद्रथ वध, यशोधरा और साकेत तक में प्रतिष्ठित एवं प्रतिफलित हुए हैं। साकेत उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है। मैथिलीशरण गुप्त जी की बहुत-सी रचनाएँ रामायण और महाभारत पर आधारित हैं। १९५४ में पद्म भूषण सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित। प्रमुख कृतियाँ — • महाकाव्य – साकेत; • खंड काव्य – जयद्रथ वध, भारत-भारती, पंचवटी, यशोधरा, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्ध्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत, झंकार, पृथ्वीपुत्र, मेघनाद वध, मैथिलीशरण गुप्त के नाटक, रंग में भंग, राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट भट, विरहिणी व्रजांगना, वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री, स्वदेश संगीत, हिडिम्बा, हिन्दू; • अनूदित – मेघनाथ वध, वीरांगना, स्वप्न वासवदत्ता, रत्नावली, रूबाइयात उमर खय्याम।

Check Also

Weekly Numerology Prediction - साप्ताहिक अंक ज्योतिष

साप्ताहिक अंक ज्योतिष दिसंबर 2024: न्यूमरोलॉजिस्ट नंदिता पांडेय

साप्ताहिक अंक ज्योतिष 23 – 29 दिसंबर, 2024: अंकशास्त्र विद्या (Numerology) में अंकों का विशेष स्थान …