नदी और पेड़ की दोस्ती: आशा सिंह
कहीं छूट न जाये साथ
बिछड़ के खो न जाऊँ इस भीड़ में
आस्तित्व न दफन हो जाये कहीं
समय के डोर से बंधा उन लम्हों को
खंगालता हूँ
तो उसमें नदी का उफनता वो लहर
याद आता है
जो हर बार जोर से प्रहार करता था
अपने किनारों पे
लेकिन उस बरगद की जड़ों को जोर
से पकड़े देखा था, अपने जमीन को
शायद ये अठखेलियाँ ही तो थीं
हर साल आया करती थीं
संग नए पेड़ पौधों को भी
जन्म देती थीं अपने किनारे
सुना करते थे कि जब तक ये नदी
ऐसे ही लहरायेंगी
तब तक ये पेड़ भी हमें झूला झुलाएँगे
ताजी हवा का मजा तो तब था
इधर कुछ सालों से मैंने भी नहीं देखी
हैं उस नदी की उफान
शायद रास्ता बदल ली है उसने
लोगों ने कद्र नहीं की उसकी
बेजान-सी पड़ी अपने अस्तित्व के लिए
लड़ रही है कहीं, जग बदल कर
उसके बगल की हरियाली भी गायब हो
गई कहीं
आज वहाँ जर्जर जमीन के सीने पर
एक पौधा भी नहीं दिख रहा
नदी और पेड़ की दोस्ती
हमसे देखी नहीं गई
इसलिए हमने उसे अपने कूड़े कचडों
का ठिकाना बना दिया
उसी सूखी नदी के सिहराने बैठे
अपने बच्चे को झूठा दिलासा दे रहा हूँ
हमसे क्षणिक रूठी है ये नदी
तुम सहलाओ प्यार से, पुकारो फिर से,
आएगी, पानी के लहरों के साथ
फिर से एक बार गुदगुदाने को
पेड़ भी आएँगे इसके पीछे
झूला झुलाने को,
झोंका हवा का फिर से दुपट्टे उडाएँगे
गोपियों के फिर से कृष्ण आएँगे
अठखेलियाँ करने कदम्ब की उस डाल
पर अपने बाँसुरी से मनमोहक गीत
सुनाने…
आशा सिंह (कम्प्यूटर अध्यापिका) St. Gregorios School, Sector 11, Dwarka, New Delhi
भारत का आधार हिंदी: सुरेश कपूर
भारत का आधार है हिंदी,
भारतीय का संस्कार है हिंदी।
भारत माँ का प्यार है हिंदी,
जय-हिंदी का प्रचार है हिंदी।।
हिंदू का अभिमान है हिंदी,
मुस्लिम का ईमान है हिंदी।
सिक्खों का गर्व है हिंदी,
भारत का एक पर्व है हिंदी।।
जनता की आशा है हिंदी,
राष्ट्र की पहचान है हिंदी।
जीवन का आधार है हिंदी,
मेरे देश की जान है हिंदी।।
सुरेश कपूर (पाँचवीं-बी) St. Gregorios School, Sector 11, Dwarka, New Delhi
वक्त: तन्मय गुप्ता
वक्त पड़ने पर मित्र की पहचान होती है।
सच है वक्त की कीमत बहुत होती है।।
वक्त पर तो सब पर, एक दिन आता है।
मित्र वहीं जो वक्त पर काम आता है।।
दिखाने को प्यार तो सभी दिखलाते हैं।
वक्त ही है जो नकली चेहरे समझ जाता है।।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वक्त पर काम आते हैं।
पर जिन्दगी भर उस पर अहसान को गाते रहते हैं।।
ऐसे लोगों की कमी भी नहीं देखी हमने।
वक्त पर काम दे, दूनी कीमत वसूल लेते हैं।।
वक्त बड़ी चीज है, जो दे जाती बुराई-भलाई।
वक्त की मार गहरी चोट कर जाती है भाई।।
कहे कक्का वक्त पर वसर के काम का आ जाओ।
भलाई से जो मिलता सुख उसका स्वाद तो पाओ।।
तन्मय गुप्ता (तीसरी-ए) St. Gregorios School, Sector 11, Dwarka, New Delhi
बिटिया स्कूल जाने लगी: सुभिक्षा
बिटिया जबसे स्कूल जाने लगी,
बात-बात पर मुझे ही पढ़ाने लगी।
वो अब मम्मा की टीचर है,
सख्त बड़ा ही इस छोटी मैम का नेचर है।।
स्कूल की छोटी-छोटी बात बताया करती है,
कभी गुस्सा तो कभी खिल-खिलाया करती है।
कल तक जिसको, लेकर सहमी थी मैं,
स्कूल में अकेले कैसे रह पाएगी ये।
अचानक इतनी बड़ी हो गयी कैसे,
सोच-सोच अब इठलाती हूँ, मैं।
चंचल इसकी काया है, मीठी इसकी बोली।
ज्ञान का पिटारा ऐसे खोले, जैसे मिसरी की हो घोली।
इसी तरह नित तू आगे बढ़ती जाए,
और ईस जग में तू सबका मान बढाए।