स्कूल मैगज़ीन से ली गयी बाल-कविताएँ

माँ: शौर्य.आर.

शब्द है थोड़े उनके आगे,
कैसे उन्हें पिरोऊँ मैं?
“माँ” की ममता सोच क्र देखूँ तो
बिना आँसू के मैं रोऊँ मैं।

जिसने ये संसार बनाया, उनके स्नेह से मन हर्षाया,
उनकी गोद में सर रखकर, बिन नींदों के सोऊँ मैं।

शब्द है थोड़े उनके आगे,
कैसे उन्हें पिरोऊँ मैं?

“माँ” का प्यार है ऐसा निराला, दुश्मन का सर भी है झुका डाला,
ऐसी “माँ” का लाल बनकर, बिन हीरे के दमकूँ मैं।

शब्द है थोड़े उनके आगे,
कैसे उन्हें पिरोऊँ मैं?

जीवन पथ की कठिन डगरिया, पार हुई पकड़ “माँ” की उंगलियाँ,
डूब जाऊँ तो भी नहीं है गम अब… बिन पतवार की नईया खेमे में।
शब्द है थोड़े उनके आगे, कैसे उन्हें पिरोऊँ मैं?

~ शौर्य.आर. (नवमीं-सी) St. Gregorios School, Sector 11, Dwarka, New Delhi

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