चौराहे की तीन सहेलियाँ: चारू
चौराहे पर तीन बत्तियाँ, एक-एक करके चलती रहती,
किसे रोकना, किसे भेजना, अपनी-अपनी कहती रहती।
लाल जले तो रुकते सारे, मोटरगाड़ी-रिक्शा वाले,
हरी जले तो खुश होते सारे, झटपट आगे बढ़ते सारे।
तैयार रहो यह पिली कहती, लाल-हरी के बीच में रहती,
जब वह लप-लप करके जलती, चलो संभलकर हमसे कहती।
नियम का पालन ये सिखलातीं, खतरों से भी हमें बचाती,
तीन सहेलियाँ चौराहे की, आपस में कुछ-न कुछ-बतलातीं।
~ चारू (पाँचवीं-ए) St. Gregorios School, Sector 11, Dwarka, New Delhi
नारी शक्ति: शेरिन वरगिस
जिसका कोई नहीं था निश्चित ठिकाना
आखिर तूने क्यों सोचा नारी को बनाना
तूने सिखाया उसे दूसरों के लिए जीना
दूसरों के लिए मरना
परंतु खुद के लिए नहीं कभी सोचना।
सच तो यह है कि
स्त्री पुरुष दोनों ही है जग के आधार
फिर क्यों माना जाता है एक को बेकार?
जिसने दूसरों के लिए सब लुटाया
उसे ही किसी ने न अपनाया।
अब तो लगता ही नहीं नारी हैं हम
क्योंकि एक वस्तु जैसी बना दी गई हैं
हम जिसने जब चाहा, जैसे चाहा,
हमारा उपयोग किया
जी उब जाने पर।
चाय में गिरी मक्खी की तरह फेंक दिया
आखिर हमारे साथ ऐसा क्यों?
क्योंकि हम नारी हैं?
भेदभाव मत करो।