श्यामला मैडम के नाम: सुजाता भट्टाचार्या
बर्ताव है आपका सबसे सूबसूरत।
आप तो हो साक्षात् प्यार की मूरत,
बनाया विद्यालय को जिसने खूबसूरत।
आपकी सुंदरता है सादगी आपकी,
इस विद्यालय में है बीती जिंदगी आपकी।
पहले-पहल जब देखा आपको,
लगा जाने कब से जाने हम आपको।
आपका मुस्कुराना, हँसना-खिलखिलाना,
हर उलझन को, सरलता से सुलझाना।।
ना कोई हिचक, ना कोई खटक,
चाहा जब भी आपसे मिले बेखटक।
जब से मिले आप हमें कर्मस्थल पर,
लगा तबसे ये विद्यालय अपना घर।
सीधा-साधा-सा व्यक्तित्व ये प्यारा,
जिसकी छत्रछाया में बना सब काम हमारा।
घंटों काम में आपका वो लीन रहना,
सिखलाता हम सबको कभी न थकना।
आपकी छत्रछाया में थे हम निडर-निहाल,
जाने पर आपके होंगे, हम-सब बेहद बेहाल।
मिलने – बिछुड़ने के इस क्रम में,
मन मेरा पड़ जाता है भ्रम में।
हूँ पूछती ईश्वर से ये सदा-सर्वदा?
ना चाहे बिछुड़ना जिनसे हम,
जाता छोड़ वही, हमें हरदम-हरदम।।
‘दुबली-पतली माता हमारी
हम सबको है वो इतनी प्यारी।
जितनी फूल में खुसबू होवे,
हम चाहे आपको कभी न खोवे।।