स्कूल मैगज़ीन से ली गयी बाल-कविताएँ

मेरे प्यारे पापा – (पिता को समर्पित कुछ पल): मुस्कान दलाल

“कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता
कभी धरती तो कभी आसमान है पिता
जन्म दिया है अगर माँ ने
जानेगा जिससे जग वो पहचान है पिता…”

“कभी कंधे पर बिठाकर मेला दिखातें हैं पिता…
कभी बनके घोड़ा घुमाते हैं पिता…
माँ अगर पैरों पर चलना सिखाती है…
तो पैरों पर खड़ा होना सिखाते हैं पिता…”

“कभी रोटी तो कभी पानी है पिता…
कभी बुढ़ापा तो कभी जवानी है पिता…
माँ अगर है मासूम-सी लोरी…
तो कभी न भूल पाऊंगा वो कहानी है पिता…”

“कभी हँसी तो कभी अनुशासन है पिता…
कभी मौन तो कभी भाषण है पिता…
माँ अगर घर में रसोई है…
तो चलता है जिससे घर वो राशन है पिता…”

“कभी ख्वाब को पूरी करने की जिम्मेदारी है पिता…
कभी आँसुओं में छिपी लाचारी है पिता…
माँ अगर बेच सकती है जरूरत पर गहने…
तो जो अपने को बेच दे वो व्यापारी है पिता…”

“कभी हँसी और खुशी का मेल है पिता…
कभी कितना तन्हा और अकेला है पिता…
माँ तो कह देती है अपने दिल की बात…
सब कुछ समेट के आसमान-सा फैला है पिता…”

मिलने को तो हजारो लोग मिल जाते हैं,
लेकिन हजारों गलतियाँ माफ करने वाले
माँ-बाप दुबारा नहीं मिलते।

हर बेटी के भाग्य में पिता होता है,
पर हर पिता के भाग्य में बेटी नहीं होती।

एक हस्ती जो जान है मेरी,
मेरे पापा जो पहचान है मेरी।

~ मुस्कान दलाल (नवमीं-सी) St. Gregorios School, Sector 11, Dwarka, New Delhi

Check Also

Baisakhi: The New Season

Baisakhi: The New Season English Poetry

Baisakhi: The New Season English Poetry – Baisakhi (especially in Punjab) is celebrated in much …