देख पराया दुःख, ह्रदय जिसका अति व्याकुल हो जाता।
जब तक दुःख न मिटता, तब तक नही चैन जो है पाता।।
पर दुःख हरने को जो सुख से निज सुख देकर सुख पाता।
करुणा सागर का सेवक वह, दयालु जग में कहलाता।।
(२)
शत्रु-मित्र निज-परमे कोई भी जो भेद नही करता।
दुःखी मात्र के दुःख से दुःखी हो, जो सबके दुःख हरता।।
तन-मन-धन – सबकी बलि देने में जो तनिक नहीं डरता।
दयालु वह जो पर-रक्षण में हँसते-हँसते है मरता।।