संख्या तारों की होती कम
उषा झांकती उठा क्षितिज से बादल की चादर का कोना
शुरू हुआ उजियाला होना
ओस कणों से निर्मल–निर्मल
उज्ज्वल–उज्ज्वल, शीतल–शीतल
शुरू किया प्र्रातः समीर ने तरु–पल्लव–तृण का मुँह धोना
शुरू हुआ उजियाला होना
किसी बसे द्र्रुम की डाली पर
सद्यः जाग्र्रत चिड़ियों का स्वर
किसी सुखी घर से सुन पड़ता है नन्हें बच्चों का रोना
शुरू हुआ उजियाला होना
~ हरिवंश राय बच्चन
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