Love is the essence. As retreating water leaves the sand dry, so does lost love leave a person drained and lifeless. Here is a beautiful expression by Suryakant Tripathi Nirala.
स्नेह निर्झर बह गया है: सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
रेत सा तन रह गया है।
आम की यह डाल जो सूखी दिखी‚
कह रही है – अब यहां पिक या शिखी‚
नहीं आते पंक्ति मैं वह हूं लिखी‚
नहीं जिसका अर्थ –
जीवन दह गया है।
दिये हैं मैंने जगत को फूल–फल‚
किया है अपनी प्रभा से चकित चल‚
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल‚
ठाट जीवन का वही –
जो ढह गया है।
अब नही आती पुलिन पर प्रियतमा‚
श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा‚
बह रही है हृदय पर केवल अमाऌ
मैं अलक्षित हूं‚ यही
कवि कह गया है।
स्नेह निर्झर बह गया है‚
रेत सा तन रह गया है।
∼ सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
शब्दार्थः
निर्झर ∼ झरना
पिक ∼ कोयल
शिखी ∼ मोर
अनश्वर ∼ अविनाशी
दह गया ∼ जल गया
पल्लवित ∼ हरा भरा
पुलिन ∼ नदी किनारे की घास
अमा ∼ अमवस्या
Hello sir es kabita ka prasang vyakhya bata sakte hai
निराला जी कि कविता को सही रुप नें उधृत करें
आग शब्द नहीं है वह “आम” है