लोहड़ी पर अनेक लोक-गीतों के गायन का प्रचलन है। “सुंदर-मुंदरिए, तेरा की विचारा – दुल्ला भट्टी वाला…” शायद सबसे लोकप्रिय गीत है जो इस अवसर पर गाया जाता है। पूरा गीत इस प्रकार है:
सुंदर मुंदरिये हो, तेरा कौन बेचारा हो
दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले ती विआई हो,
शेर शकर पाई हो, कुड़ी दे जेबे पाई हो,
कुड़ी कौन समेटे हो, चाचा गाली देसे हो
चाचे चुरी कुटी हो, जिम्मीदारा लूटी हो,
जिम्मीदार सुधाये हो, कुड़ी डा लाल दुपटा हो,
कुड़ी डा सालू पाटा हो, सालू कौन समेटे हो,
आखो मुंडियों ताना ‘ताना’, बाग़ तमाशे जाना ‘ताना’,
बागों मनु कोडी लबी ‘ताना’ कोडी दा मैं का ‘खरदिया ताना’
का मैं गऊ नू दिता ‘ताना’ गऊ मनु दुध दिता ‘ताना’
दुध दी मैं खीर बनाई ‘ताना’, खीर मैं पंडित नू दिति ‘ताना’
पंडित ने मनु धोती दिति ‘ताना’ पाड़ पुढ़ के ‘काके’ दी लगोटी सीति ‘ताना’
English Translation
“The ‘ho’s are in chorus
Who do you have
The groom with the tandoor
The groom’s daughter got married
He gave 1 kg sugar!
The girl is wearing a red suit!
But her shawl is torn!
Who will stitch her shawl?!
The uncle made choori!
The landlords ate it!
He made the landlords eat a lot!
Lots of innocent guys came
One innocent boy got left behind
The police arrested him!
The policeman hit him with a brick!
Cry or howl!
Give us lohri… long live your jodi!
लड़कियां निम्न गीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं:
‘पा नी माई पाथी तेरा पुत्त चढेगा हाथी हाथी
उत्ते जौं तेरे पुत्त पोत्रे नौ!
नौंवां दी कमाई तेरी झोली विच पाई
टेर नी माँ टेर नी
लाल चरखा फेर नी!
बुड्ढी साँस लैंदी है
उत्तों रात पैंदी है
अन्दर बट्टे ना खड्काओ
सान्नू दूरों ना डराओ!
चारक दाने खिल्लां दे
पाथी लैके हिल्लांगे
कोठे उत्ते मोर सान्नू
पाथी देके तोर!
इसके अतिरिक्त भी लड़कियां विभिन्न बधाई गाती हैं:
‘कंडा कंडा नी लकडियो
कंडा सी
इस कंडे दे नाल कलीरा सी
जुग जीवे नी भाबो तेरा वीरा नी,
पा माई पा,
काले कुत्ते नू वी पा
काला कुत्ता दवे वदाइयाँ,
तेरियां जीवन मझियाँ गाईयाँ,
मझियाँ गाईयाँ दित्ता दुध,
तेरे जीवन सके पुत्त,
सक्के पुत्तां दी वदाई,
वोटी छम छम करदी आई।’
यदि अपेक्षाकृत लोहड़ी नहीं मिलती या कोई लोहड़ी नहीं देता तो लड़कियां भी अपनी नाराजगी गीत द्वारा इस प्रकार प्रदर्शित करती हैं:
‘साड़े पैरां हेठ रोड, सानूं छेती-छेती तोर!’
‘साड़े पैरां हेठ दहीं असीं मिलना वी नईं!’
‘साड़े पैरां हेठ परात सानूं उत्तों पै गई रात!’
जैसे पंजाब में प्राय: बोलियां गाने का प्रचलन है उसी प्रकार लोहड़ी पर भी रिश्ते / रिश्तेदारों को निशाना बनाकर बोलियां कही जाती हैं जैसे मां, बाप, नाना, नानी इत्यादि से लोहड़ी लेने का निम्न लोहड़ी की बोलियां जैसे गीत गाए जाते हैं:
‘कोठी हेठ चाकू गुड़ दऊ मुंडे दा बापू।’
अब तो ‘पिताजी’ को कुछ न कुछ देकर छुटकारा करवाना पड़ता है वरना लोहड़ी मांगने वाला गाली भी गा देता है: ‘मेवा दित्ता सूक्खा पे मुंडे दा भूक्का!’
यदि मनवांछित लोहड़ी मिलती है तो मांगने वाले आभार भी जता देते हैं – ‘कलमदान विच घयो जीवे मुंडे दा पियो!’ इसी प्रकार अन्य रिश्तेदारों को भी लक्ष्य बनाकर निम्न प्रकार के गीत, बधाई गाई जाती है –
‘कोठी उत्ते कां गुड़ दऊ मुंडे दी मां!’
इस प्रकार लोहड़ी मांगने के गीत, लक्ष्य करने को गीत, आभार जताने को गीत व यदि लोहड़ी नहीं मिलती तो अपयश हेतु गीत प्रचलित हैं।