तुम दिशा मत मोड़ जाना
तुम अगर ना साथ दोगे
पूर्ण कैसे छंद होंगे
भावना के ज्वार कैसे
पक्तिंयों में बंद होंगे
वर्णमाला में दुखों की
और कुछ मत जोड़ जाना
देह से हूँ दूर लेकिन
हूँ हृदय के पास भी मैं
नयन में सावन संजोए
गीत भी मधुमास भी मैं
तार में झंकार भर कर
बीन–सा मत तोड़ जाना
पी गई सारा अंधेरा
दीप–सी जलती रही मैं
इस भरे पाषाण युग में
मोम सी गलती रही मैं
प्रात को संध्या बना कर
सूर्य–सा मत छोड़ जाना
~ निर्मला जोशी
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