सिरहाना भी कहलाता तकिया।
अपना-अपना तकिया लेना,
उस पर गिलाफ अवश्य चढ़ाना।
मैले तकिये पर न सोना,
नियम से उसका खोल धुलवाना।
बहुत ऊंचा तकिया न लेना,
पिल्लो-फाइट भी न करना।
पीठ टिकाने के काम आता,
गाव तकिया वह कहलाता।
अच्छे-अच्छे शेर और स्वीट ड्रीम्स,
गिलाफों पर काढ़े जाते थे।
मेहमानों के बिस्तर में पहले,
ऐसे तकिये रखे जाते थे।