वक़्त का सब्र

वक़्त का सब्र

आगे सफर था…
और पीछे हमसफर था…
रूकते तो सफर छूट जाता…
और चलते तो हम सफर छूट जाता…
मुद्दत का सफर भी था…
और बरसो का हम सफर भी था…
रूकते तो बिछड जाते…
और चलते तो बिखर जाते…

यूँ समँझ लो…
प्यास लगी थी गजब की…
मगर पानी मे जहर था…
पीते तो मर जाते…
और ना पीते तो भी मर जाते…
बस यही दो मसले…
जिंदगी भर ना हल हुए…
ना नींद पूरी हुई…
ना ख्वाब मुकम्मल हुए…

वक़्त ने कहा…
काश थोड़ा और सब्र होता…
सब्र ने कहा…

काश थोड़ा और वक़्त होता…

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