न कुछ तेरे बस का, न कुछ मेरे बस का
कहाँ है मेरा तेरे नजदीक आना
कहाँ है तेरा मुस्कराना लजाना
हुआ खात्म अपना वो मिलने का चसका
न कुछ तेरे बस का, न कुछ मेरे बस का
मैं था खूबसूरत, तू थी इक हसीना
वो सर्दी की रातें, पसीना पसीना
मगर रातभर अब तो खाँसी का ठसका
न कुछ तेरे बस का, न कुछ मेरे बस का
जवानी की घड़ियाँ थीं मस्ती में बीती
ये तन की सुराही हुई अब तो रीती
करा इम्तहाँ चाहे तू नस–नस का
न कुछ तेरे बस का, न कुछ मेरे बस का