तूफ़ान – नरेश अग्रवाल

यह कितनी साधारण सी बात है
रात में तूफान आये होंगे तो घर उजड़ गए होंगे घर
सुबह जगता हूँ तो
लगता है कितनी छोटी रही होगी नींद
धुप के साथ माथे पर पसीना
पेड़ गिर गए, टूट गए कितने ही गमले,
मिटटी बिखर गयी इतनी सारी
और सभी चीजें कहती हैं हमें वापस सजाओ
पूरी करी नींद हमारी भी,
सुना है छोटे मकानो को सजाना आसान होता है
बकरियां पाल लो तो कहीं भी चरती रहेंगी
लेकिन दूध तो अपना ही होगा
थोड़ा सा बोझ उठाओ की हाथ में दर्द न हो
इतना कम पकाओ की आग सुरक्षित रहे
और मैं तुम्हारे आने से पहले जाग पड़ता हूँ
कि जानता हूँ खुशियों,
तुम्हे मेरा स्वागत करना कितना अच्छा लगता है।

∼ नरेश अग्रवाल

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