टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी - वंदना गोयल

टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी – वंदना गोयल

इस टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी को
हंस के मैं पी रही हूं

किस्तों में मिल रही है
किस्तों में जी रही हूं

कभी आंखों में छिपा रह गया था
इक टुकड़ा बादल

बरसते उन अश्कों को
दिनरात मैं पी रही हूं

अक्स टूटते बिखरते
आईनों से बाहर निकल आते हैं

मेरा समय ही अच्छा नहीं
बस जज्बातों में जी रही हूं

अश्कों के धागे से जोड़ने
बैठी हूं टूटा हुआ दिल

मैं पलपल कतराकतरा
मोम बन पिघल रही हूं

झांझर की तरह पांव में भंवर
हालात ने बांधे हैं

रुनझुन संगीत की तरह
मैं खनक रही हूं

मौत, हसीं दोस्त की तरह
दरवाजे तक भी नहीं आती

मैं घडि़यां जिंदगी की
इक इक सांस पे गिन रही हूं

किस्तों में मिल रही है
किस्तों में जी रही हूं

टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी को
हंस के मैं पी रही हूं।

~  वंदना गोयल

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