साप्ताहिक संपादक उनके थे साले
काले के लेख छपते
साले के गीत गबते
दोनों की तिजोरियों में अलीगढ़ के ताले
भाषण देने खड़े हुए मटरूमल लाला
दिमाग़ पर न जाने क्यों पड़ गया था ताला
घर से याद करके
स्पीच ख़ूब रटके
लेकिन आके मंच पर जपने लगे माला
साले की शादी में गए कलकत्ता
पाँच सौ रुपये का बना लिया भत्ता
कैसे मेरे पिया
जनसंपर्क किया
कुछ भी करो राज तुम्हारी है सत्ता
मिस लोहानी बहुत करती थीं मेकअप
दूसरे के घर चाय पीती थीं तीन कप
उधार की रसम
देने की कसम
बहुत कोई माँगता तो कह देती ‘शट–अप’
बेकार है दूध ‘वर्थलैस’ है घी
हॉट और कोल्ड ड्रिंक जी भर के पी
डाइटिंग कर
हो पतली कमर
चाँटा मारे कोई तो कर ही ही ही