ये लहर पर नाचते ताजे कमल की छांव, मेरी गोद में।
दो बड़े मासूम बादल, देवताओं से लगाते दांव, मेरी गोद में।
रसमसाती धुप का ढलता पहर,
ये हवाएं शाम की
झुक झूम कर बिखर गयीं
रौशनी के फूल हारसिंगार से
प्यार घायल सांप सा लेता लहर,
अर्चना की धुप–सी
तुम गोद में लहरा गयीं,
ज्यों झरे केसर
तितलियों के परों की मार से,
सोन जूही की पखुरियों पर पले ये दो मदन के बान
मेरी गोद में।
ज्यों प्रणय की लोरियों की बांह में
झिलमिला कर,
औ’ जला कर तन, शर्माएं दो
अब शलभ की गोद में आराम से सोई हुई,
पा फरिश्तों के परों की छांह में
दुबकी हुई, सहमी हुई
हो पूर्णिमाएं दो
देवता के अश्रु से धोई हुई
चुंबनों की पंखुरी के दो जवान गुलाब
मेरी गोद में।
सात रंगों की महावर से रचे महताब
मेरी गोद में।
ये बड़े सुकुमार,
इनसे प्यार क्या?
ये महज आराधना के वास्ते
जिस तरह भटकी सुबह को रास्ते
हरदम बताये शुक के नभ फूल ने
ये चरण मुझको न दें
अपनी दिशाएं भूलने
ये खंडहरों में सिसकते स्वर्ग के दो गान
मेरी गोद में।
रश्मि पंखों पर अभी उतरे हुए वरदान
मेरी गोद में।