Here is a great poem from which inspiration may be derived. Author is the well-known poet Kshem Chand Suman.
उठो स्वदेश के लिये बने कराल काल तुम
उठो स्वदेश के लिये बने विशाल ढाल तुम
उठो हिमाद्रि श्रंग से तुम्हे प्रजा पुकारती
उठो प्रशांत पंथ पर बढ़ो सुबुद्ध भारती
जागो विराट देश के तरुण तुम्हें निहारते
जागो अचल, मचल, विफल, अरुण तुम्हें निहारते
बढ़ो नयी जवानियाँ सजीं कि शीश झुक गए
बढ़ो मिली कहानियाँ कि प्रेम गीत रुक गए
चलो कि आज स्वत्व का समर तुम्हें पुकारता
चलो कि देश का सुमन–सुमन तुम्हें निहारता
उठो स्वदेश के लिये, बने कराल काल तुम
उठो स्वदेश के लिये, बने विशाल ढाल तुम
~ क्षेमचंद सुमन
आचार्य क्षेम चन्द ‘सुमन’ (16 सितम्बर, 1916 – 23 अक्तूबर, 1993) हिन्दी साहित्यकार एवं पत्रकार थे। उन्हें १९८४ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है – ‘दिवंगत हिन्दी साहित्यसेवी कोश’ का दो भागों में प्रकाशन। इस असाधारण ग्रन्थ को तैयार करने के लिये सुमन जी ने सम्पूर्ण
भारत के गाँव-गाँव, नगर-नगर को दो बार लगभग पैदल ही नाप दिया। बनारसीदास चतुर्वेदी का लक्ष्य यदि स्वतन्त्रता सेनानियों और शहीदों के बलिदानों को उजागर करना तथा उनके आश्रितों की सहायता करना और करवाना था तो ‘सुमन’ जी का लक्ष्य लेखकों की मदद करना था।